दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस उप निरीक्षक के वकीलों पर अपशब्दों को किया कड़ा नक़ाबंदी: ‘कानून के रक्षक, शिकारी नहीं’

दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस उप निरीक्षक के वकीलों पर अपशब्दों को किया कड़ा नक़ाबंदी: ‘कानून के रक्षक, शिकारी नहीं’
23 सितंबर 2025 0 टिप्पणि आर्य वरदान नागपाल

अदालत में पुलिस अधिकारी का अपमानजनक व्यवहार

22 सितंबर 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट के धारा 2(3) के तहत चल रहे आपराधिक मामले Crl.A. 284/2025 – Rameshwar v. State Govt. of NCT of Delhi में एक अनोखा टकराव हुआ। ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के थाना का उप निरीक्षक नरिंदर, जो इस केस में जांच अधिकारी थे, ने कोर्ट के प्रवेश द्वार के ठीक बाहर वकीलों को मौखिक अपमान और धमकी देना शुरू कर दिया। दोनों पक्षों – अपीलेंट/दोषी और शिकायतकर्ता के वकीलों – ने मिलकर एक संयुक्त मौखिक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें बताया गया कि उप निरीक्षक ने न केवल बेतुके शब्दों से उनका अपमान किया, बल्कि आगे के दंडात्मक कार्रवाई की धमकी भी दी। वरिष्ठ वकील, जो मामले की प्रमुख जिम्मेदारी ले रहे थे, को रोकने का प्रयास करने पर भी वही व्यवधान देखा गया।

जज अरुण मोंगा ने इस व्यवहार को "बर्दाश्त नहीं" कर सकते, इस बात पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "उप निरीक्षक नरिंदर का यह क़दम न तो व्यावसायिक मानकों के अनुकूल है और न ही न्यायिक संस्थाओं के सम्मान को। पुलिस को कानून के रक्षक के रूप में देखा जाता है, शिकारी के रूप में नहीं।" ऐसी टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो गया कि अदालत ने इस प्रकार के दुराचार को सख़्त शब्दों में निंदा किया है।

न्यायालय की प्रतिक्रिया और आगे की कार्यवाही

न्यायालय की प्रतिक्रिया और आगे की कार्यवाही

शुरुआत में जज ने उप निरीक्षक के खिलाफ FIR दर्ज करने और केस की जांच के लिए एएसपी स्तर के अधिकारी को नियुक्त करने की संभावना जताई। हालांकि, उप निरीक्षक ने तुरंत अदालत के सामने माफ़ी माँगी। इस त्वरित प्रतिक्रिया को देखते हुए, जज ने आदेश में बदलाव करते हुए कहा कि माफ़ी लिखित रूप में, एक शपथपत्र (अफ़िडेविट) के माध्यम से अगले कार्य दिवस तक प्रस्तुत की जाए।

इस आदेश में यह स्पष्ट संकेत मिला कि न्यायालय में पुलिस कर्मियों को आदर और संवैधानिक मर्यादा के साथ पेश आना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट परिसर में किसी भी प्रकार का दमन, धमकी या शारीरिक हिंसा पूरी तरह से बर्दाश्त नहीं की जाएगी, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

वकीलों और न्यायिक कर्मचारियों ने इस निर्णय का स्वागत किया, और कहा कि इस तरह के आदेश भविष्य में समान घटनाओं को रोकने में मदद करेंगे। उप निरीक्षक की लिखित माफ़ी के बाद, कोर्ट ने मामले को सामान्य प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ने दिया, लेकिन उपरोक्त आदेश को स्पष्ट रूप से सभी पुलिस विभागों के लिए एक चेतावनी के रूप में दर्ज किया गया।

**दिल्ली हाई कोर्ट** की इस कड़ी प्रतिक्रिया ने यह संदेश दिया कि विधि के पालन में कोई भी चेहरा नहीं बच सकता, चाहे वह पुलिस का अधिकारी हो या अन्य कोई भी प्राधिकारी।